Monday, November 18, 2019

सोशल मीडिया पर अक्सर सवाल पूछा जाता है कि डॉ.आंबेडकर वकील थे तो भगत सिंह का केस क्यों नहीं लड़े

सोशल मीडिया पर अक्सर सवाल पूछा जाता है कि डॉ.आंबेडकर वकील थे तो भगत सिंह का केस क्यों नहीं लड़े?


यह सवाल व्यंग, नफरत या आक्रोश अथवा जिज्ञासावश में पूछा जा सकता है। सवाल प्रथम दृष्टया उचित लगता है, परंतु अक्सर इसका मकसद दुष्प्रचार होता है। इसका सटिक जवाब जानने से पहले हमें हालातों को जानना होगा। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी दी गई थी। यह वह दौर था जब शूद्र-अतिशूद्र या यूं करे कि अंबेडकर जब स्कूल जाते थे तो उन्हें स्कूल के बाहर दरवाजे के पास बैठकर पढ़ाई करना पड़ता था। चूंकि भगत सिंह सिख थे तो उन्हें यह दंश झेलना नहीं पड़ा। शिक्षित होकर अंबेडकर जब नौकरी करने बड़ोदा गए तो उन्हें किराये पर होटल, धर्मशालाएं, कमरा तक नहीं मिला। जब वे सिडनम कालेज में प्रोफेसर बने तो बच्चे उनसे पढ़ने के लिए राजी नहीं हुए। ऐसे में जून 1923 से अंबेडकर ने वकालत का काम शुरू किया। उन्हें बार काउंसिल में भी बैठने के लिए जगह नहीं दी गई। अस्पृश्ता के चलते अंबेडकर को केस नहीं मिल पाते थे। एक गैर ब्राह्मण अपना केस हार जाने के बाद अंबेडकर के पास आए तो उनके केस की जीत ने उन्हें ख्याति दी। लेकिन वकालत अंबेडकर की रोजी-रोटी नहीं थी। जातिवाद के कारण केस नहीं मिलने पर उन्होंने बाटली बॉयज अकाउंटेंसी में लेक्चरर का काम शुरू कर दिया।

__हालातों को जानना जरूरी______

यह वह दौर था जहां किसी अछूत के छूने भर से हिन्दुओं का धर्म भ्रष्ट हो जाता था। इस दौर में आर्थिक जद्दोजहद के बीच जब कोई केस देने के लिए तैयार न हो, वहां भगत सिंह का केस अंबेडकर द्वारा न लड़ने का बेतुका तर्क पेश करना महज मूर्खता है। वैसे भी भगत सिंह का केस लाहौर में चल रहा था। जबकि अंबेडकर मुंबई में रहा करते थे। और भगत सिंह के केस की पैरवी जाने माने वकील आसिफ अली कर रहे थे। वकालत के क्षेत्र में उनका दबदबा था, ऐसे में आसिफ अली को हटाकर अंबेडकर को केस देने की कल्पना भी कोई कर नहीं सकता था।

_आरएसएस के गोलवलकर के मित्र भगत सिंह विरोधी_

भगत सिंह के खिलाफ जहां सुप्रसिद्ध वकील आसिफ अली पैरवी कर रहे थे।

वहीं अंग्रेजों की तरफ से पैरवी करने वाले ब्राह्मण वकील का नाम था सूर्य नारायण शर्मा। यह वही शर्मा है जो आरएसएस के संस्थापक गोलवलकर के बहुत अच्छे मित्र थे। याद रहे कि अंबेडकर ने 150 वर्षों की अंग्रेजों की राजनीतिक गुलामी के मुकाबले में ढाई हजार वर्ष से भी अधिक की सामाजिक गुलामी को नष्ट करने के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया। ऐसे में आजादी की लड़ाई को लेकर जहां क्रांतिकारियों का नाम गर्व से लिया जाता है, वहीं सामाजिक आजादी के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान पर अंबेडकर का नाम अभिमान के साथ लिया जाता है।

__एक पहलू यह भी________

जिस समय संपूर्ण देश में एकमात्र अछूत वकील के तौर पर अंबेडकर की पहचान थी, तब भी उन्हें केस नहीं मिल पाए। आर्थिक तंगी के चलते प्रोफेसर की नौकरी करनी पड़ी। ऐसे में भगत सिंह का केस स्वयं पहल कर, मुंबई से लाहौर जाकर लड़ना किसी भी दृष्टिकोण से सुविधाजनक नजर नहीं आता। यदि केस लड़ना भी चाहे तो मशहूर वकील आसिफ अली से केस वापिस लेकर अंबेडकर को सौंपने का कोई तार्किक मुद्दा नजर नहीं आता। एक पहलू यह भी है कि जहां ब्राह्मण वकील अंग्रेजों की पैरवी कर रहे थे, वहां देश में अनेक नामचीन वकील क्या तमाशा देख रहे थे ? जबकि वर्ष 2013 में पाकिस्तान के वकील इम्तियाज कुरैशी ने भगत सिंह की केस को दोबारा खुलवाया। इसकी पैरवी अब्दुल रशीद ने की। 2014 में अब्दुल ने एफआईआर की कॉपी मांगी तो पता चला कि एफआईआर में भगत सिंह का नाम ही नहीं है। उन्हें केवल रजिस्टर के आधार पर फांसी दे दी गई।

और अंत में______

अंबेडकर की निष्ठा व कार्य को लेकर समय-समय पर मनुवादियों द्वारा सवाल उठाया जाना एक आम बात है। लेकिन हमें उतनी ही सजगता से सभी तरह के आक्षेप व आरोपों का प्रतिउत्तर देना आना चाहिए। इसके लिए लगातार उन सवालों का पीछा करते हुए उसकी गहराई में जाने का विवेक निर्माण किया जाना चाहिए। सवाल भले ही बचकाने हो, लेकिन उसे पूछने वाले व्यक्ति का मकसद यदि अंबेडकर के चरित्र हनन का हो तो हमें चुप रहकर सवालों से मुंह मोड़ लेना ठीक नहीं। अंबेडकर के लिए अंग्रेजों की 150 वर्ष की गुलामी से कहीं अधिक जरूरी मुद्दा था, 2500 वर्ष की सामाजिक व वर्ण व्यवस्था से उपजी जातियवादी गुलामी को समाप्त करना। अत्यंत जरूरी लड़ाई उन्होंने लड़ी। अब हम क्यों चुप रहे?

सोचिए!

आप ने इसे पढ़ने के लिए समय दिया उसका बहुत-बहुत धन्यवाद।

अब एक एहसान और कर दो। इस संदेश को अन्य 10-20  साथियों में और भेज दो। बस यही तरीका है अपने साथियों को जागरूक करने।

Sunday, November 17, 2019

सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे हैं बाबा रामदेव और पतंजलि, जानिए क्यों मचा है बवाल...

सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे हैं बाबा रामदेव और पतंजलि, जानिए क्यों मचा है बवाल...


नई दिल्ली। बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों के खिलाफ अभियान चलाकर लोगों के बीच लोकप्रिय हुई बाबा रामदेव की पतंजलि भी अब विदेश कंपनियों से हाथ मिलाने की तैयारी में है। इकॉनोमिक टाइम्स की इस खबर पर बवाल मच गया और सोशल मीडिया पर #Shutdownpatanjali ट्रेंड करने लगा।
 

पतंजलि और बाबा रामदेव पर लोगों के गुस्से की वजह उनकी अंबेडकर और पेरियार पर की गई टिप्पणी को भी बताया जा रहा है और ट्विटर पर #RamdevinsultsPeriyaar ओर #Arrestramdev भी ट्रेंड कर रहा है।
  
 
कई लोगों ने इस प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बाबा रामदेव और पतंजलि पर उन्हें धोखा देने का आरोप लगाया। कुछ लोगों का यह भी कहना था कि पतंजलि के प्रोडक्ट भी कई बार क्वालिटी चैकिंग में फेल हो गए। 
 


हालांकि कुछ ही देर बाद #Salute_बाबा_रामदेव भी ट्रेंड करने लगा। यहां लोग बाबा रामदेव पतंजलि के उत्पादों की सराहना कर रहे थे। साथ ही बाबा रामदेव के विरोधियों को जवाब भी दिया जा रहा था।
उल्लेखनीय है कि पतंजलि आयुर्वेद के CEO आचार्य बालकृष्ण ने कहा है कि उनके पास 3-4 ग्लोबल कंपनियों के ऑफर हैं, जो पतंजलि के साथ इंटरनेशनल लेवल पर डील करना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि जब तक ग्लोबल कंपनियों का उनके प्राइज के साथ कोई टकराव नहीं होगा, तब तक वो उनके साथ काम करेंगे।
 


वित्त मंत्री ने कहा, मार्च तक बेच दिया जाएगा एयर इंडिया और भारत पेट्रोलियम


वित्त मंत्री ने कहा, मार्च तक बेच दिया जाएगा एयर इंडिया और भारत पेट्रोलियम



वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया, मार्च तक बेच दी जाएगी एयर इंडिया और भारत पेट्रोलियम
   

हाइलाइट्स:

  • वित्त मंत्री ने कहा है कि मार्च तक एयर इंडिया और भारत पेट्रोलियम की बिक्री की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी
  • उन्होंने कहा कि इस बार निवेशकों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है
  • वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिए समय पर आवश्यक कदम उठाए गए हैं
वक़्त नहीं है? हाइलाइट्स पढ़ने के लिए डाउनलोड ऐप
नई दिल्ली
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा है कि सरकार चाहती है मार्च तक एयर इंडिया और ऑइल रिफाइनर भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL) की बिक्री की प्रक्रिया पूरी कर ली जाए। हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि अगले साल की शुरुआत में ही ये दोनों काम पूरे हो जाने की उम्मीद है। वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार को इन दो कंपनियों को बेचने से इस वित्त वर्ष में एक लाख करोड़ का फायदा होगा।
सीतारमन ने कहा, 'एयर इंडिया की बिक्री प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही निवेशकों में उत्साह देखा गया है।' पिछले साल निवेशकों ने एयर इंडिया को खरीदने में ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया था इसलिए इसे नहीं बेचा जा सका था। बता दें कि मौजूदा वित्त वर्ष में कर संग्रह में गिरावट को देखते हुए सरकार विनिवेश और स्ट्रैटजिक सेल के जरिए रेवेन्यू जुटाना चाहती है।

वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिए समय पर जरूरी कदम उठाए गए हैं और कई क्षेत्र अब सुस्ती से बाहर निकल रहे हैं। सीतारमन ने बताया कि कई उद्योगों के मालिकों से कहा गया है कि वे अपनी बैलेंस शीट में सुधार करें और उनमें से कई नए निवेश की तैयारी कर रहे हैं।

वित्त मंत्री ने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि कुछ क्षेत्रों में सुधार से जीएसटी कलेक्शन बढ़ेगा। इसके अलावा सुधार के कदमों से भी कर संग्रह बढ़ सकता है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एस्सार स्टील पर जो फैसला सुनाया है इससे काफी सुधार देखने को मिला है और अगली तिमाही में इसका प्रभाव बैंकों की बैलेंस शीट पर देखने को मिलेगा। उन्होंने कहा कि लोगों में बदलाव आया है क्योंकि त्योहारों के दौरान बैंकों ने 1.8 लाख करोड़ का लोन बांटा है। सीतारमन ने कहा, 'अगर उपभोक्ताओं की आर्थिक स्थिति पटरी पर न होती तो वे बैंकों से लोन लेने के बारे में विचार ही क्यों करते? और ऐसा पूरे देश में है।' 

मंदिर में दान कर दी जाती थी कुंआरी लड़कियां, ऐसे बनाई जाती थी देवदासी

मंदिर में दान कर दी जाती थी कुंआरी लड़कियां, ऐसे बनाई जाती थी देवदासी


उन्हें जीवनभर इसी तरह रहना पड़ता था। कहते हैं कि इस दौरान उनका शारीरिक शोषण किया जाता था


मुंबई. देवदासी प्रथा यूं तो भारत में हजारों साल पुरानी है, पर वक्त के साथ इसका मूल रूप बदलता गया। कानूनी तौर पर रोक के बावजूद कई इलाकों में इसके जारी रहने की खबरें आती ही रहती हैं। हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों को एक आदेश जारी कर इसे पूरी तरह रोकने को कहा है। जानिए आखिर क्या है ये प्रथा.... मशहूर बॉलीवुड सिंगर भी थीं इस कम्युनिटी से - माना जाता है कि ये प्रथा छठी सदी में शुरू हुई थी।
- इस प्रथा के तहत कुंवारीलड़कियों को धर्म के नाम पर ईश्वर के साथ ब्याह कराकर मंदिरों को दान कर दिया जाता था। - माता-पिता अपनी बेटी का विवाह देवता या मंदिर के साथ कर देते थे।
- परिवारों द्वारा कोई मुराद पूरी होने के बाद ऐसा किया जाता था।
- देवता से ब्याही इन महिलाओं को ही देवदासी कहा जाता है।
- उन्हें जीवनभर इसी तरह रहना पड़ता था। कहते हैं कि इस दौरान उनका सेक्शुअल हैरेसमेंट भी किया जाता था।
- मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी देवदासी प्रथा का उल्लेख मिलता है। - साउथ इंडिया की मशहूर क्लासिकल सिंगर एम. एस सुब्बुलक्ष्मी भी देवदासी कम्युनिटी से थी। उनकी मां वीणा वादक थीं, वहीं दादी वायनलिस्ट थीं। (चर्चा क्यों- आज वुमन्स डे के मौके पर historyindiatime.com आपको बता रहा है देवदासी प्रथा के बारे में, जो आज भी भारत के कई इलाकों में चली आ रही है। यह महिलाओं के शोषण की एक आदिम प्रथा है। ) कालिदास ने मेघदूतम में किया है जिक्र देवदासी यानी 'सर्वेंट ऑफ़ गॉड'। देवदासियां मंदिरों की देख-रेख, पूजा-पाठ की तैयारी, मंदिरों में नृत्य आदि के लिए थीं। कालिदास के 'मेघदूतम्' में मंदिरों में नृत्य करने वाली आजीवन कुंवारी कन्याओं की चर्चा की है। संभवत: इन्हें देवदासियां ही माना जाता है। लिखी जा चुकी हैं कई किताबें देवदासियों के बारे में देश-विदेश के इतिहासकारों ने कई किताबें लिखी हैं। एनके. बसु की पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ प्रॉस्टिट्यूशन इन इंडिया', एफए मार्गलीन की किताब 'वाइव्स ऑफ द किंग गॉड, रिचुअल्स ऑफ देवदासी', मोतीचंद्रा की 'स्टडीज इन द कल्ट ऑफ मदर गॉडेस इन एन्शियंट इंडिया', बीडी सात्सोकर की 'हिस्ट्री ऑफ देवदासी सिस्टम' में इस प्रथा के बारे में विस्तार से बताया गया है। जेम्स जे फ्रेजर की किताब 'द गोल्डन बो' में भी इस प्रथा के बारे में विस्तार से लिखा गया है। 

अंग्रेजों_ने भारत पर 150 वर्षों तक राज किया ब्राह्मणों ने उनको भगाने का हथियार बन्द आंदोलन क्यों चलाया?

अंग्रेजों_ने भारत पर 150 वर्षों तक राज किया ब्राह्मणों ने उनको भगाने का हथियार बन्द 
आंदोलन क्यों चलाया?

जबकि भारत पर सबसे पहले हमला मुस्लिम
शासक मीर काशीम ने 712 ई. में किया! उसके बाद महमूद   गजनबी, मोहमंद गौरी, चन्गेज खान ने हमला किए और फिर  कुतुबदीन   एबक, गुलामवंश, तुगलकवंश, खिलजीवंश, लोदीवंश
फिर मुगल आदि वन्शो
ने भारत पर राज किया
और   खूब    अत्याचार
किए  लेकिन ब्राह्मण ने
कोई क्रांति या आंदोलन
नही चलाया ! फिर
अन्ग्रेजो के खिलाफ़ ही
क्यों क्रांति कर दी ।

*जानिये  क्रांति   और  आंदोलन की वजह ।*

1- अंग्रेजो  ने    1795
में अधिनयम 11  द्वारा
शुद्रों  को   भी    सम्पत्ति
रखने का कानून बनाया।

2- 1773 में ईस्ट इंडिया
कम्पनी ने रेगुलेटिग एक्ट पास किया जिसमें न्याय
व्यवस्था समानता    पर
आधारित थी ।  ।6 मई 1775 को  इसी  कानून द्वारा बंगाल के सामन्त ब्राह्मण  नन्द कुमार देव को फांसी हुई थी ।

3- 1804 अधिनीयम 3 द्वारा   कन्या  हत्या   पर रोक   अंग्रेजों  ने  लगाई (लडकियों के पैदा होते ही तालु में अफीम चिपकाकर, माँ के
स्तन पर धतूरे का
लेप लगाकर, एवम्
गढ्ढा बनाकर उसमें दूध डालकर डुबो कर मारा जाता था ।

4- 1813 में ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाकर शिक्षा ग्रहण करने का सभी जातियों और धर्मों के लोगों को अधिकार दिया।

5- 1813 में  ने दास प्रथा का अंत कानून बनाकर किया।

6-  1817  में     समान नागरिक संहिता कानून बनाया ।   1817    के पहले सजा का प्रावधान वर्ण के आधार पर था। ब्राह्मण को कोई   सजा नही होती थी ओर   शुद्र को   कठोर   दंड   दिया
जाता था। अंग्रेजो      ने सजा का प्रावधान समान कर दिया।

7- *1819 में अधि- नियम  नम्बर  7 द्वारा ब्राह्मणों  द्वारा    शुद्र  स्त्रियों के शुद्धिकरण पर रोक लगाई।*  (शुद्रों की शादी होने पर दुल्हन को अपने यानि दूल्हे  के घर न जाकर कम से कम तीन रात  ब्राह्मण के घर शारीरिक   सेवा देनी पड़ती थी।)

8- *1830 नरबलि प्रथा पर रोक -* (देवी देवता को प्रसन्न करने के लिए ब्राह्मण शुद्रों,  स्त्री   व् पुरुष दोनों को मन्दिर
में सिर पटक पटक कर
चढ़ा देता था। )

9- 1833   अधिनियम 87 द्वारा सरकारी सेवा में भेद भाव   पर   रोक अर्थात  योग्यता ही सेवा का  आधार     स्वीकार किया गया तथा कम्पनी केअधीन किसी भारतीय
नागरिक     को     जन्म स्थान, धर्म, जाति या रंग के आधार   पर   पद  से वंचित  नही   रखा    जा सकता है।

10- 1834  में   पहला भारतीय  विधि  आयोग का गठन हुआ । कानून
बनाने   की     व्यवस्था जाति,  वर्ण,  धर्म  और क्षेत्र की भावना से ऊपर उठकर  करना   आयोग का प्रमुख उद्देश्य था।

11-  *1835  प्रथम  पुत्र को गंगा दान पर रोक !*   (ब्राह्मणों ने नियम बनाया  की शुद्रों के घर यदि पहला बच्चा लड़का पैदा हो तो  उसे गंगा में फेंकदेना चाहिये।
पहला पुत्र ह्रष्ट-पृष्ट एवं
स्वस्थ पैदा होता है।यह
बच्चा ब्राह्मणों से लड़ न
पाए इसलिए पैदा होते ही गंगा को दान करवा देते थे। )

12- 7 मार्च 1835 को
लार्ड मैकाले ने   शिक्षा
नीति राज्य  का  विषय
बनाया और उच्च शिक्षा
को   अंग्रेजी   भाषा का
माध्यम  बनाया  गया।

13- 1835 को कानून बनाकर अंग्रेजों ने शुद्रों को कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया।

14- दिसम्बर 1829 के
नियम 17 द्वारा विधवाओं को जलाना अवैध घोषित कर सती प्रथा का अंत किया।

15- देवदासी   प्रथा पर
रोक लगाई। ब्राह्मणों के
कहने   से  शुद्र   अपनी
लडकियों को मन्दिर की
 सेवा के लिए  दान  देते थे। मन्दिर  के   पुजारी उनका शारीरिक शोषण करते थे। बच्चा पैदा होने पर उसे  फेंक देते थे।और उस बच्चे को हरिजन नाम  देते थे।
1921 को जातिवार जनगणना के आंकड़े के अनुसार अकेले मद्रास में कुल जनसंख्या 4 करोड़
 23 लाख थी जिसमें 2
लाख देवदासियां मन्दिरों में पड़ी थी।  यह प्रथा अभी भी दक्षिण भारत के मन्दिरो  में  चल रही है।

16- 1837 अधिनियम द्वारा ठगी प्रथा का अंत किया।

17- 1849 में कलकत्ता
 में एक बालिका विद्यालय जे ई डी बेटन ने स्थापित  किया।

18-  1854 में अंग्रेजों ने  3 विश्वविद्यालय कलकत्ता मद्रास और बॉम्बे में स्थापित किये। 1902 मे विश्वविद्यालय आयोग   नियुक्त किया गया।

19- 6 अक्टूबर 1860
को अंग्रेजों  ने  इंडियन
पीनल    कोड  बनाया।
लार्ड मैकाले ने सदियों
से  जकड़े   शुद्रों    की
जंजीरों  को  काट दिया
ओर भारत में जाति, वर्ण और धर्म के बिना  एक
समान   क्रिमिनल   लॉ
लागु कर दिया।

20- 1863 अंग्रेजों   ने कानून बनाकर   चरक पूजा पर रोक लगा दिया (आलिशान भवन एवं पुल निर्माण पर शुद्रों को
पकड़कर जिन्दा चुनवा
दिया जाता था इस पूजा
में मान्यता थी की भवन
और पुल ज्यादा दिनों
तक  टिकाऊ  रहेगें।

21- 1867 में  बहू विवाह प्रथा पर पुरे देश में  प्रतिबन्ध लगाने के
उद्देश्य से बंगाल सरकार
ने एक कमेटी गठित किया ।

22- 1871 में अंग्रेजों ने भारत में जातिवार गणना प्रारम्भ की। यह जनगणना 1941 तक हुई । 1948 में पण्डित नेहरू ने कानून बनाकर जातिवार गणना पर रोक लगा दी।

23- 1872 में सिविल
मैरिज एक्ट द्वारा 14
वर्ष से कम आयु की कन्याओं एवम् 18 वर्ष से कम आयु के लड़को
का विवाह वर्जित करके
बाल  विवाह  पर   रोक
लगाई।

24- अंग्रेजों ने महार और चमार रेजिमेंट बनाकर इन जातियों को सेना में  भर्ती किया लेकिन 1892  में ब्राह्मणों के दबाव के कारण सेना में अछूतों की भर्ती बन्द हो गयी।

25- रैयत वाणी पद्धति अंग्रेजों    ने    बनाकर प्रत्येक पंजीकृत भूमिदार को  भूमि का स्वामी स्वीकार  किया।

26- 1918 में साऊथ
बरो कमेटी को भारत मे
अंग्रेजों ने भेजा ।   यह कमेटी भारत में   सभी जातियों का विधि
मण्डल (कानून बनाने
की संस्था) में भागीदारी
के लिए आया था। शाहू
जी महाराज   के  कहने पर  पिछङो    के   नेता भाष्कर   राव जाधव ने एवम् अछूतों के नेता डा
अम्बेडकर ने   अपने लोगों को विधि मण्डल में  भागीदारी के लिये
मेमोरेंडम दिया।

27- अंग्रेजो ने 1919 में भारत सरकार अधिनियम का गठन किया ।

28- 1919 में अंग्रेजो ने ब्राह्मणों के जज बनने पर रोक लगा दी थीऔर
कहा था की इनके अंदर
न्यायिक चरित्र नही होता है।

29- 25 दिसम्बर1927
को डा अम्बेडकर द्वारा
मनु समृति का दहन किया। मनु स्मृति में
शूद्रों और   महिलाओं   को गुलाम   तथा  भोग  की वस्तु समझा जाता था एक  पुरूष   को अनगिनत  शादियां करने का धार्मिक अधिकार है। महिला अधिकार विहीन तथा दासी की स्थिति में थी। एक - एक औरत के अनगिनत  सौतने   हुआ करती थी   औरतो- शूद्रों को सिर्फ   और    सिर्फ गुलामी लिखा है जिसको एक  राक्षस मनु  ने  धर्म का नाम दिया है।

30- 1 मार्च 1930 को
डा अम्बेडकर द्वारा काला राम मन्दिर (नासिक)  प्रवेश का आंदोलन  चलाया।

31- 1927 को अंग्रेजों ने कानून बनाकर शुद्रों के सार्वजनिक स्थानों पर जाने का अधिकार दिया।

32- नवम्बर 1927   में साइमन   कमीशन   की नियुक्ति की। जो 1928 में भारत के अछूत लोगों की  स्थिति का सर्वे करने और उनको अतिरिक्त अधिकार देने के लिए आया। भारत के लोगों को अंग्रेज अधिकार न दे सके इसलिए इस कमीशन के भारत पहुँचते ही गांधी और लाला लाजपत राॅय ने इस कमीशनके विरोध में बहुत बड़ा आंदोलन चलाया। जिस कारण
साइमन कमीशन अधूरी
रिपोर्ट लेकर वापस
चला गया। इस पर
अंतिम फैसले के लिए
अंग्रेजों ने भारतीय
प्रतिनिधियों को 12
नवम्बर 1930 को लन्दन गोलमेज सम्मेलन में  बुलाया।

33- 24 सितम्बर 1932 को अंग्रेजों ने कम्युनल
अवार्ड घोषित किया
जिसमें प्रमुख अधिकार
निम्न दिए----

A--वयस्क मताधिकार

B--विधान मण्डलों और
संघीय सरकार में जन संख्या   के  अनुपात
में अछूतों को आरक्षण
का अधिकार

C--सिक्ख, ईसाई और मुसलमानों की तरह अछूतों (SC/ST )को  भी स्वतन्त्र निर्वाचन के क्षेत्र का अधिकार मिला। जिन क्षेत्रों में अछूत प्रतिनिधिखड़े होंगे उनका चुनाव केवल अछूत ही करेगें।

D--प्रतिनिधियोंको चुनने के लिए दो बार वोट का
अधिकार मिला  जिसमें
एक   बार  सिर्फ  अपने
प्रतिनिधियों को वोट देंगे
दूसरी   बार    सामान्य
प्रतिनिधियों   को   वोट देगे।

34- 19 मार्च 1928 को बेगारी प्रथा के विरुद्ध डा अम्बेडकर ने मुम्बई
विधान परिषद मेंआवाज
उठाई , जिसके बाद
अंग्रेजों ने इस प्रथा को
समाप्त कर दिया।

35- अंग्रेजों ने 1 जुलाई 1942 से लेकर 10 सितम्बर 1946 तक डाॅ अम्बेडकर को वायसराय की कार्य साधक कौंसिल में   लेबर   मेंबर बनाया। लेबरो को डा अम्बेडकर ने 8.3 प्रतिशत आरक्षण दिलवाया।

36-- 1937 में अंग्रेजों
ने भारत में प्रोविंशियल गवर्नमेंट   का    चुनाव करवाया।

37-- 1942 में अंग्रेजों
से डा. अम्बेडकर ने 50
हजार हेक्टेयर भूमि को
अछूतों एवम् पिछङो में
बाट देने के लिए अपील
किया ।  अंग्रेजों ने 20 वर्षों की समय सीमा तय किया था।

38- अंग्रेजों   ने  शासन प्रसासन में ब्राह्मणों  की भागीदारी को 100% से 2.5% पर लाकर खड़ा
कर दिया था।

इन्ही सब वजाह से ब्राह्मणों  ने अन्ग्रेजो के खिलाफ़  क्रांति शुरू कर दी क्योकि  अन्ग्रेजो  ने शुद्रो और महिलाओं को सारे अधिकार दे दिये थे और  सब जातियो के लोगो को एक समान अधिकार देकर सबको बराबरी मे लाकर खडा किया
   ☸☸
जनजागरण  हेतु  ज्यादा से ज्यादा ग्रुपों में शेयर करो  ताकि  ज्यादा से ज्यादा  अनुसूचित जाति और जनजाति  के भाई लोग अपना  ज्ञानवर्धन कर सकें । पढेंगे   तभी तो जानेंगे ।  इज्जत  से जीना चाहते  हो तो  देश से पाखण्ड वाद  हटाओ देश      की   अखण्डता बचाओ    पाखण्ड  मुक्त  भारत बनाओ ।

*यह सब जानकर अगर आप समझते  हैं कि मैने आपका समय व्यर्थ  किया माफी चाहता हूँ । आगे से आपको  इस तरह की जानकारी वाली पोस्ट  नही भेजी जाऐगी ।

Saturday, November 16, 2019

उत्तर प्रदेश: खेत में शौच के लिए गई दलित महिला का गैंगरैप, विरोध करने पर हुई पिटाई

 उत्तर प्रदेश  Reported by Babu Gautam

शामली जिले के अहाता गोस गढ़ गांव में चार लोगों ने 30 वर्षीय दलित महिला के साथ कथित रूप से सामूहिक बलात्कार किया.



प्रतीकात्मक फोटो

संविधान बाबासाहेब ने ही क्यों लिखा और कोई दूसरा क्यों नही लिख सका

संविधान बाबासाहेब ने ही क्यों लिखा और कोई दूसरा क्यों नही लिख सका ?
By Babu Gautam


पढ़िए और चार लोगो में सर उठाकर बताइए....
 बाबासाहब नं.१ थे
गांधी भी Barrister थे,
नेहरु भी Barrister थे,

राजगोपालाचारी,
मुंशी,
बी. एन. राव ,
जे . पी. कृपलानी
ऐसे बहुत सारे लोग थे ।

फिर बाबासाहब को ही संविधान क्यों लिखना पड़ा...?

1946 मे Constitution Assembly के election हुए ,
नेहरु और पटेल ने ये declare किया था कि ,

 "हमने संविधान सभा के सारे दरवाजे , खिडकिया बंद कर दिये हैं, देखते है बाबासाहब कैसे अन्दर आते हैं?"

ये उस वक्त की political स्थिति थी ।

क्योंकि वो सब लोग जानते थे कि " बाबासाहब वो व्यक्ति हैं जो हमारी
कोंग्रेस को नहीं मानते,
गांधी को नहीं मानते,
नेहरू को नहीं मानते
और
पुरे देश और दुनिया मे इनकी अपनी एक position है ।

Constitution तो वह तब लिखेंगे जब वे संविधान सभा मे आयेंगे , हम उनको संविधान सभा मे आने हि नही देंगे , हम उन्हे जीतने ही नहीं देंगें ..." ऐसा Open Declaration वल्लभभाई पटेल ने दिया था...!

इसलिये बाबासाहब को संविधान सभा मे जाने के लिये ventilator के सहारे जाना पडा, वो ventilator था,

"जैसुर-खुलना" बंगाल का इलाका, वहा से बाबासाहब को लड़ना पडा और बाबासाहब संविधान सभा मे चुने गये

3 जुन 1947 मे भारत और पाकिस्तान का बंटवारा करके बाबा साहब का वह इलाका पाकिस्थान के हवाले जान बूजकर किया गया था।

बाबासाहब कांग्रेस की गद्दारि से पाकिस्थान सविधान सभा के मेंबर बन गए थे।

तब बाबासाहब ने प्रेशर से काम किया ।

उस वक्त भारत मे 560 रियासतों में से हैद्राबाद, भोपाल, त्रवनकोर, कोल्हापूर, इनको भारत मे कैसे शामिल किया जाये , इनका Constitutional Settlement कैसे किया जाये इसके लिये British Cabinet की Meeting हुई ।

हैदराबाद, त्रावनकोर, कश्मीर इन तीनों राज्यों ने ये declare किया कि, हम भारत मे शामिल नहीं होंगे, हम पाकिस्तान की तरह स्वतंत्र होंगे ।

उस वक्त नेहरु, पटेल और गांधी किसी को ये समझ मे नहीं आ राहा था कि, इन 560 रियासतों को किस तरह settlement किया जाये..!

17 जुन 1947 में बाबासाहब ने International Press को संबोधित किया ।

जिसमें उन्होने तीन बाते बोली....

1) ब्रिटिश पार्लियामेंट को भारत के राज्य के संप्रभुता, सार्वभौम के उपर Law बनाने का कोइ अधिकार नहीं हैं ! ऐसा कोइ International Law नहीं हैं । जिसके तहत ये राज्य भारत मे रहेंगे, या नहीं रहेंगे ये decide करने का अधिकार और power ब्रिटीश पार्लियामेंट के पास नहीं हैं..!

2) और इन सारे राज्यों के राजाओ से अपिल है कि, "अगर तुम सोचते हो कि आप सयुक्त राष्ट्र मे जाओगे , और सयुक्त राष्ट्र भारत की सार्व भौमिकता नजर अंदाज करके आपको Independence बनायेगा तो आपसे बडा नासमझ कोइ नहीं है..! "

3) इन सारे राजाओं को बाबासाहब ने कहा, " आप सभी भारत मे शामिल हो जाओ , हम इसी देश के अंदर आपका Constitutional Settlement कर सकते हैं और हम एक बडा राष्ट्र बना सकते हैं..!" और यह सब बाबासाहब ने तब कहा था, जब नेहरु, गांधी और पटेल को समझ मे नहीं आ रहा था कि इन राज्यों का Integration कैसे किया जाये ...!

बाबासाहब आंबेडकर को संविधान लिखने का मौका क्यूं मिला इसके दो मुख्य कारण हैं..

1) उस समय बाबासाहब से बडा Constitutional expert, Constitutional philosopher दुनिया मे कोई नहीं था ....1927 Bombay legislative council से लेकर labour Ministry, Constitute assembly तक जो बाबासाहब आंबेडकर ने विविध legislative के काम किये थे उसे पूरी दुनिया जानती थी !
Govt. Of India act 1935 जो बना उसके लिये जो तीन Rountable Conferences हुइ उसमें बाबासाहब ने जो views दिये थे । उनका 50% amendment Govt. Of India act 1935 मे हूआ था !

2) मुसलमानों के बाद भारत में दूसरा सबसे बडा Minority,
schedule caste था,
और बाबासाहब आंबेडकर ने ये stand लिया था कि, अगर बनने वाले संविधान में हमारे संवैधानिक अधिकार सुरक्षित नहीं रखे गये तो, वह संविधान हमें मंजूर नहीं होगा ।

नेहरू और गांधी को ये डर था कि, यदि partition of India हुआ और उसके बाद अगर संवैधानिक solution नहीं मिला, तो भारत के 560 टुकडे हो सकते हैं ।

भारत का balkanization हो सकता हैं । और अगर ये हमे रोकना हैं, तो एक ही आदमी इस देश को बचा सकता है, और वो हैं Dr बाबासाहब आंबेडकर.....
और
इसलिए Dr. बाबासाहब आंबेडकर को संविधान लिखने का मौका मिला ...

संविधान सभा मे Drafting कमैटी को मिलाकर total 23 कमैटीया बनीं ।
जिसमें से २० कमैटी पे अकेले बाबासाहेब ने ही कामकिया और संविधान का ड्राफ्ट 141 दिनों मे तैयार किया ।

इससे ये मालुम होता हैं कि बाबासाहब दुनिया के सबसे बडे Constitutionality Expert थे....।

Drafting कमैटी मे जितने लोग थे उनमे से
कोइ बिमार हूआ,
कोइ छुट्टी पर चला गया,
कोइ विदेश गया ,
कोई अपने घर के कामों में व्यस्त रहे ।
किसी ने रिजाईन की वह जगह खाली वह रही ।

इसलिये खुद टि. टि. कुश्नमाचारी बोले कि " पूरा संविधान बनाने का काम अकेले बाबासाहब पर आ गया और उन्होने उसे बहुत खूबी से निभाया !"

इसलिये 1950 के बाद नया भारत बना।

जिसे हम लोकतांत्रिक और संविधानिक भारत कहते हैं, जिसका बाबासाहब ने निर्माण किया ।

"लोकतांत्रिक और संवैधानिक भारत के राष्ट्रपिता Dr. बाबासाहब आंबेडकर हैं", ये हमे समझने कि जरुरत हैं।

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जय भीम!!