Thursday, November 14, 2019

विरप्पन गोंड ने 17वर्ष की उम्र में जंगलों में अपनी हकूमत कायम कर वहाँ आसपास के मनुवादी शासन-प्रशासन में भय पैदा कर दिया था

#वीर_विरप्पन_गोंड


विरप्पन गोंड ने 17वर्ष की उम्र में जंगलों में अपनी हकूमत कायम कर वहाँ  आसपास के मनुवादी  शासन-प्रशासन में भय पैदा कर दिया था।   श्रीनिवासन ब्राह्मण ने विरप्पन की बहन को प्यार के झांसे में रखकर व गर्भवती बना कर शादी से इन्कार कर दिया तो विरप्पन गोंड ने श्रीनिवासन की हत्या कर और टुकडे-टुकडे कर मछलियों को खिला दिया था। विरप्पन-गोंडर के प्रभाव के कारण ही वहाँ के आदिवासियों को अत्याचार, बलात्कार, हत्या व शोषण से मुक्ति मिल गयी थी और उन्हें मजदूरी का पूरा पैसा मिलने लगा था, जो मनुवादी शासन-प्रशासन नहीं चाहता था कि आदिवासियों की आर्थिक हालात में फायदा हो।

फिल्म अभिनेता राजकुमार का अपहरण करने के बाद विरप्पन गोंड ने सरकार के सामने राज्य की दस प्रमुख समस्या रखी और मांगे पूरा करने का अल्टीमेटम दिया।
मांगे निम्नलिखित थीं ।

1- कावेरी पानी का विवाद जबतक हल नहीं होता तबतक कर्नाटक सरकार तमिलनाडु के लिये प्रतिमाह 250TMC पानी दे।

2- सन 1991 में भडके कावेरी-पानी विवाद में जो तमिल पुलिस फायरिंग में मारे गये थे, उनके परिवारों को उचित मुआवजा दिया जावे।

3- स्पेशल टास्क फोर्स की ज्यादतियों की जांच करने वाले सदाशिव-आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ज्यादतियों से पीडित आदिवासियों को प्रति व्यक्ति 10 से 5 लाख रुपए का मुआवजा दिया जावे।

4- टाडा के तहत बन्द 51 आदिवासी  कैदियों को फौरन रिहा किया  जावे।  क्योंकि पुलिस ने अपनी नाकामी की वजह से निर्दोष आदिवासियों  को टाडा के तहत बंद कर दिया गया है।
5- पुलिस ज्यादतियों में मारे गये 9 अनुसूचित व जनजाति के लोगों को उचित मुआवजा दिया जावे।

6- नीलगीरि की पहाडियों पर चायपत्ती तौडने वाले मजदूरों को प्रति  एक किलाग्राम चसय पत्ती पर 15 रुपए दिये जाए ।

7- तमिल कवि और समाज सुधारक थिरुवेल्लुर की प्रतीमा बंगलौर में लगाई जावे

8- तमिल-नेशनल-लिब्रेशन आर्मी के तमिलनाडु जेल में बंद पांच लोगों को रिहा किया जाए।

9- कर्नाटक सरकार तमिल-भाषा  को अतिरिक्त राजभाषा का दर्जा दे।

10- मजदूरों की मजदूरी बढाई जाए ।

आदिवासी विरप्पन गोंड को पकडने के लिये सरकार ने स्पेशल टास्क फोर्स बनाई! मगर 150 बेकसूर अनुसूचित व जनजाति के लोगों के हत्यारे रणवीर सेना व उसके मुखिया पर मनुवादी सरकार व मीडिया ने कभी-भी हायतौबा नहीं मचाई । जबकि विरप्पन गोंड ने किसी आदिवासी व अनुसूचित जाति के लोगों की हत्या नहीं की, बल्कि उनकी हत्या की, जो मनुवादी  उन्हें पकडने व मारने आये थे और उन मनुवादियों की हत्या की जो अत्याचारी व बलात्कारी थे।

History India time के मुताबिक विरप्पन गोंड एक वीर मूलनिवासी महायोद्धा था और आदिवासियों में बहुत लोकप्रिय था।  महानारी फूलनदेवी ने बाईस. ठाकुर  मनुवादियों की हत्या कर अपने बलात्कार का बदला लिया और वहीं विरप्पन-गोंडर ने आदिवासी समुदाय की बेहतर सुरक्षा, सामाजिक, शैक्षिणक  व आर्थिक सुरक्षा प्रदान की। वहीं भारतीय मनुवादी मीडिया ने फूलनबाई को दस्यू-सुन्दरी व विरप्पन-गोंडर को चन्दन तस्कर घोषित कर वंचित-समाज के मुंह पर करारा तमाचा जड दिया था। आदिवासी राजा प्रवीरचन्द्र गोंड व अन्य 262 आदिवासी राजाओं का भारत में विलय के दौरान  क्या हश्र हुआ, यह कोई नहीं जानता है।

जिस सादगी से विरप्पन गोंड की विधवा पत्नी व दो मासूम लडकियां फटेहाल जिन्दगी जी रही हैं, उन्हें देखकर क्या आप यकीन करेंगे कि उसने करोडों रुपए कमाए हैं। यही स्थिति आदिवासी महा क्रांतिकारी बिरसा-मुन्डा के परिवार की है। मगर अधिकांश  वंचित-समाज या तो उन्हें जानता नहीं है और ना ही  कभी उन्हें  जानने व समझने की कोशिश की है कि तमिल समुदाय आदिवासी हैं।

तमिलनाडु के धर्मपुरी स्थित अस्पताल में विरप्पन की लाश को देखने आये ग्रामीणों ने एसटीएफ से विरप्पन की हत्या किये जाने पर बेहद आक्रोश जताया था।  ६२ साल  के वेंकटम्माल को लगता है कि उसने अपना बेटा खो दिया है ।

पुलिस ने विरप्पन के रिश्तेदारों को धमकी देते हुए, उसी रात को चारों लाशों को जलाने की कोशिश की, एसटीएफ जल्दबाजी में  तीन लाशें जलाने में कामयाब हो गये। मगर मानवाधिकार संस्थाओं के पदाधिकारियों व विरप्पन की पत्नी मुथुलक्ष्मी, भाई मदैयन व आदिवासियों  के विरोध के कारण  विरप्पन की लाश को दफनाया गया।  मगर पुलिस प्रशासन ने आखिरी संस्कार करने की अनुमति नहीं दी। मय्यत के रिश्तेदारों व डाक्टरों से हासिल जानकारी के मुताबिक विरप्पन  के हाथपैर कुचले गये थे तथा उसका लिंग मनुस्मृति के नियम के अनुसार  काटा गया था। विरप्पन की हथेलियां जली हुई पायी गयी थीं। उसके कुल्हे की हड्डी चूर-चूर पाई गयी, गर्दन पर सुईयां चुभोने के अनगिनत  निशान थे।  मगर रिश्तेदार यह बात किसी को उजागर नहीं कर पाए। क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं जयललिता सरकार एसटीएफ के हाथों उनका फर्जी  एनकाउंटर कर उन्हें विरप्पन का साथी घोषित न कर दे।

दीगर सूत्रों से इकट्ठा की गयी जानकारी के मुताबिक विरप्पन को उनके मुखबिर हुए साथियों ने विरप्पन को धोखे से बेहोशी की दवा दे दी और एसटीएफ के मनुवादी  अधिकारियों ने विरप्पन को गिरफ्तार कर बुरी तरह से यातनाएँ देकर मार दिया  गया था। एसटीएफ के एनकाउंटर की झूठी कहानी गढी गयी थी। बैंगलोर की प्रेस कान्फ्रेंस में एसटीएफ प्रमुख विजयकुमार ने पत्रकारों व जांच अधिकारियों  को खुलेआम धमकाते हुए कहा कि "हम सच्चाई की खोज करने वाली टीमों से निपटना अच्छी तरह से जानते हैं"।  ब्राह्मणवादी अखबार दिनारमाला में झूठे नामों से धमकियां दी गयी  कि अगर उन्होने सच्चाई की खोज करना जारी रखा तो उन्हें गिरफ्तार होना पडेगा। मरने वालों के रिश्तेदारों को धमकियां दी गयी कि वे सच्चाई की खोज करने वाली टीमों को कुछ नहीं बताएं ।
हाईकोर्ट में मुकदमा दर्ज करने के बाद ही रिश्तेदारों को विरप्पन-गोंडर व अन्य मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल पाई थी। एसटीएफ के अधिकारियों ने जांच एजेंसियों को एम्बुलेंस, घटना स्थल व सबूतों का मौका-मुआयना नहीं  करने दिया गया था।  मानवाधिकार आयोग की प्रार्थना शासन-प्रशासन ने ठुकरा दी गयी थी।

एसटीएफ ने पूरे जंगल को ही यातना शिवर में बदल दिया गया। एडवोकेट तथा मानवाधिकार कार्यकर्ता मान-बालामुरुगन ने अपनी किताब "सोलागार-डोड्डी " में क्रूर यातनाओं की तस्वीरें छापी हैं और बताया है कि एसटीएफ किसी भी आदिवासी को पकडकर क्रूर यातनाएं देकर मार डालती है और एनकाउंटर में मरा हुआ घोषित कर देती है। यातनायें देने का विवरण बहुत  डरावना है , जिसमें युवतियों से बलात्कार, युवक-युवतियों के अंगभंग करना, योनि अत्याचार, हत्या, विभिन्न भीषण  यातनाएं आदि शामिल हैं। कर्नाटक  सरकार ने सदाशिव-आयोग की जांच बन्द करवा दी है। क्योंकि कर्नाटक ,  केन्द्र सरकार व शासन-प्रशासन पर मनुवादी ब्राह्मणों की व्यवस्था कायम है।

उपरोक्त हालात कश्मीर से कन्याकुमारी और असम, पूर्वी, दक्षिणी, उत्तरी  व पश्चिमी क्षेत्रों के आदिवासी व अनुसूचित जातियों के लोगों के साथ आज भी कायम  हैं। मनुवादी आतंकवाद  आज शहरों व नगरों में विभिन्न संस्थाएँ, संगठन, संघ व सेना बनाकर आतंकवादी कार्यवाही कर रही है । क्योंकि किसी न किसी रुप में शासन-प्रशासन, कानून, मीडिया व सेना में मनुवादियों का वर्चस्व है और अधिकांश वंचित-समाज उनकी बन्दरसेना ,वोटबैंक व अंगरक्षक  बनी हुई है।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कश्मीर में अधिकांश ओबीसी, अनुसूचित जाति व आदिवासी समाज के लोग हैं, जो मनुवादी ब्राह्मणों के अत्याचार, शोषण, हत्या व बलात्कार  से पीडित होकर मुसलमान बन गये हैं, जबकि मनुवादी ब्राह्मण वहाँ आज भी शासन-प्रशासन में घूसपेठ किये हुए हैं।  पूर्वी, पश्चिम,  दक्षिणी व उत्तरी भारत में आदिवासियों को आतंकवादी, उग्रवादी, नक्सलवादी, माओवादी के नाम पर आप्फसा कानून के तहत मारा जा रहा है और समस्त भारत में आदिवासी व अनुसूचित जाति के लोगों का सामाजिक, धार्मिक, मानसिक, आर्थिक व शैक्षणिक रुप से शोषण, हत्या, बलात्कार कर प्रताडित किया जा रहा है।

क्या हम शहर में आकर सुरक्षित हों गये हैं!  यह आपका भ्रम मात्र है। क्योंकि शहर, कस्बों व गांवों में  भी किसी न किसी रुप में मनुवादी व्यवस्था आपका व आपके बच्चों का सामाजिक, धार्मिक, मानसिक, आर्थिक व शैक्षिणक रुप से शोषण हो रहा है ।

आप प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से मनुवादी ब्राह्मणों के शासन व प्रशासन में बन्दरसेना, वोटबैंक व अंधभक्त बनकर सहयोग कर रहे हैं ?

#समाज_हित_में ।।

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